द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी व्रत से घर में आती है सुख-समृद्धि

पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। फाल्गुन महीने में पड़ने वाली संकष्टी चतुर्थी को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है, तो आइए हम आपको द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी व्रत की कथा, व्रत तथा महत्व के बारे में बताते हैं। संकट हरने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। इस साल द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी 12 फरवरी को पड़ रही है। इस गणेश भगवान के 32 स्वरूपों में से छठें रूप की पूजा होती है। इसमें गणेश भगवान के चार सिर तथा चार भुजाएं होती है। गणेश जी इस रूप की आराधना से अच्छा स्वास्थ्य तथा सुख-समृद्धि मिलती है। साथ ही भगवान गणेश भक्त के सभी दुखों का अंत करते हैं। 


संकष्टी चतुर्थी से जुड़ी पौराणिक कथा 

संकष्टी चतुर्थी से सम्बन्धित पौराणिक कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार प्राचीन काल में किसी शहर में एक साहूकार और उसकी पत्नी रहते थे। साहूकार दम्पत्ति को ईशवर में आस्था नहीं तथा वह निःसंतान थे। एक दिन साहूकार की पत्नी अपने पड़ोसी के घर गयी। उस समय पड़ोसी की पत्नी संकट चौथ की कथा कह रही थी। तब साहूकार की पत्नी ने उसे संकष्टी चतुर्थी के बारे में बताया। उसने कहा संकष्टी चौथ के व्रत से ईश्वर सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। तब साहूकार की पत्नी ने भी संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया तथा सवा सेर तिलकुट चढ़ाया। इसके बाद साहूकार की पत्नी गर्भवती हुई और उसे पुत्र पैदा हुआ। 

 

साहूकार का बेटा बड़ा हुआ तो उसने ईश्वर से कहा कि मेरे बेटे का विवाह तय हो जाए तो व्रत रखेगी और प्रसाद चढ़ाएगी। ईश्वर की कृपा से साहूकार के बेटे का विवाह तय हो गया लेकिन साहूकार की मां व्रत पूरा नहीं कर सकी। इससे भगवान नाराज हुए और उन्होंने शादी के समय दूल्हे को एक पीपल के पेड़ से बांध दिया। उसके बाद उस पीपल के पेड़ के पास वह लड़की गुजरी जिसकी शादी नहीं हो पायी थी। तब पीपल के पेड़ से आवाज ए अर्धब्याही ! यह बात लड़की ने अपनी मां से कहा। मां पीपल के पेड़ के पास आया और पूछा तो लड़के ने सारी कहानी बतायी। तब लड़की की मां साहूकारनी के पास गयी और सब बात बतायी। तब साहूकारनी ने भगवान से क्षमा मांगी और बेटा मिल जाने के बाद व्रत करने और प्रसाद चढ़ाने के लिए ईश्वर प्रार्थना की। इसके कुछ दिनों बाद साहूकारनी का बेटा उसे मिल गया और उसकी शादी हो गयी तभी से सभी गांव वाले संकष्टी चतुर्थी की व्रत करने लगे।